जंगीपुर गाँव में महिला की हत्या के बाद सिहर गए थे ग्रामीण:गाँव में अंधविश्वास का न हो बोल बाला इसलिए दिव्यांग और संविदाकर्मी बच्चों को दे रहे हैं फ्री कोचिंग
समाज के लोगों से अपेक्षा इन लोगों को करें सहयोग
अतुलधर दुबे
GARHWA:(बंशीधर नगर)
कौन कहता है कि आसमां में छेद नही होता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो..यह पंक्ति सटीक बैठती है नगर पंचायत क्षेत्र के उरांव टोला के दो युवकों दिव्यांग संतोष उरांव और शनि उरांव पर। यह वही टोला है जहां पर एक सप्ताह पूर्व तंत्र-मंत्र के चक्कर मे एक महिला की जीभ काटकर वीभत्स तरीके से हत्या कर दी गयी थी। जिसके बाद आधुनिकता का दंभ भरने वाले समाज पर प्रश्न चिन्ह लग गया था। एसपी के निर्देश पर इस टोले में पुलिस द्वारा जागरूकता अभियान चलाया गया। लेकिन इन दो युवकों ने इस टोले को अंधविश्वास के जकड़न से मुक्त कराने का निश्चय किया। और लग गए अपने मिशन पर। दोनों युवक बताते हैं उरांव टोला में शिक्षा की काफी कमी है। अधिकांश परिवार गरीबी में जीवन जीने को मजबूर है। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नही दे पाते। जिसका कारण उक्त घटना है। युवकों ने बताया कि शिक्षा के अभाव से ही सामाजिक कुरीतियों को मजबूत होने का मौका मिलता है। इस टोले मेअधिकाँश लोग अंधविश्वास और नशे के आदि है।
दोनों ने बताया कि महिला की हत्या के बाद हम लोग अंदर से हिल गए थे। अपने समाज के भविष्य को लेकर आशंकित हो गए थे। जिसके बाद हमलोगों ने ठाना की जैसे भी हो देश के भविष्य बच्चों की जिंदगी बर्बाद नही होने देंगे। और इन बच्चों को शिक्षित करेंगे।
दोनों ने टोले में घुम घूम कर आने घर बच्चों को स्कुल के बाद शिक्षा देने के लिए बुलाया। हालांकि एक दो दिन काफी कम बच्चे आये। लेकिन दोनों ने हौसला टूटने नही दिया। आज आलम है कि 70 बच्चे पढ़ने आने लगे। बच्चों की बढ़ती उपस्थिति के कारण इनका घर छोटा पड़ने लगा।
स्नातक फर्स्ट ईयर के छात्र दिव्यांग संतोष बताते है कि मैं खुद नशा करता था लेकिन उक्त घटना के बाद मैं सब छोड़ के बच्चों को पढ़ाने लगा। अगर बच्चे शिक्षित हो जाएंगे तो समाज से कुरीति खुद ब खुद खत्म हो जाएगी। कहा कि सरकारी स्कूल में उचित शिक्षा भी नही मिल पाती साथ ही बच्चे स्कूल भी नही जाते थे। इनके परिवारवालों को समझया। अब उपस्थिति संतोषजनक है। यहां पर 3 से 7 क्लास तक के बच्चे पढ़ने आ रहे है।
वही इस मिशन में लगे एक और युवा शनि उरांव भवनाथपुर में संविदा पर स्वास्थ्य कर्मी है। डयूटी करके आने के बाद 4 से 6 बजे तक बच्चों को पढ़ाने में लग जाता है। बताता है कि यह करके उसे काफी सुकून मिलता है। लगता है कि इस टोले पर जो कलंक लगा है वह आगे चलकर खत्म हो जाये। और यह शिक्षा से ही सम्भव है। उसने बताया कि एक सप्ताह में ही बच्चे किताब पढ़ने, जोड़, भाग, एलसीएम, गुणा, भाग सिख गए है।
दोनों ने कहा कि चुकी यहां पढ़ने वाले बच्चे काफी गरीब है। कॉपी पेन भी खरीदने में इन्हें दिक्कत होती है। हमलोगों की भी आर्थिक स्थिति उतनी ठीक नही है। कम बच्चे थे तो हम लोग कॉपी पेन उपलब्ध करा देते थे। लेकिन बच्चों की संख्या बढ़ने से हमलोगों को भी दिक्कत होगी। समाज के लोगो से अपेक्षा करते हैं कि बच्चों को कॉपी और पेन उपलब्ध कराए।