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रांची: झारखंड स्थापना दिवस विशेष: जानिए बिहार से कैसे अलग बना झारखंड, पढ़िये पूरी कहानी….

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रांची:15 नवंबर झारखंड के एक अलग राज्य के अस्तित्व में आने की तारीख है. झारखंड का बिहार से अलग होने के पीछे एक लंबी कहानी है. झारखंड का भूगोल, भाषा, संस्कृति, परंपरा, खानपान बिहार से बिल्कुल अलग था. इन्हीं को आधार बनाकर राज्य के आंदोलनकारियों के समूह ने एक नये राज्य की मांग को लेकर कई दर्शकों तक संघर्ष किया. जिसके परिणाम के रूप में 12 नवंबर 2000 को झाऱखंड उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के साथ अस्तित्व में आया.




जयपाल सिंह मुंडा ने रखी बुनियाद
झारखंड आंदोलन की शुरुआत राजनीतिक रूप से जयपाल सिंह मुंडा ने किया था. 1929 में पहली बार जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड को अलग करने की मांग अंग्रेजों से की थी. इस मांग को साइमन कमीशन ने ठुकरा दिया था. इसके 10 साल बाद 1939 को आदिवासी महासभा की स्थापना जयपाल सिंह मुंडा ने की. 1947 को भारत आजाद होता है. एक नई उम्मीद के साथ जयपाल सिंह मुंडा भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने अलग राज्य झारखंड का प्रस्ताव रखते हैं. उन्होंने झारखंड को बिहार से अलग करने के पीछे दो कारण बताये.
पहली भाषा, बिहार में भोजपुरी, मैथिली जैसी भाषा बोली जाती थी, वहीं झारखंड में द्रविड़ और जनजाति भाषा बोली जाती थी. दूसरा कारण भौगोलिक भिन्नता थी. बिहार में जहां समतल भूमि है, जहां कई नदियां बहती है, जो खेती के लिए उत्तम है. वहीं दूसरी तरफ झारखंड का हिस्सा पठार है.

बिहार से बना झारखंड, जानिये राज्य बनने की पूरी कहानी
साल 1949 को जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासी महासभा जो कि सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन थी. उसका नाम बदलकर झारखंड पार्टी कर देते हैं. झारखंड पार्टी के गठन के साथ ही अलग झारखंड बनाने का राजनीतिक तौर पर संघर्ष की शुरुआत हो जाती है. अब उनकी “झारखंड पार्टी” लोकसभा और विधानसभा के चुनावी मैदान में उतरती है. प्रयास सिर्फ यही होता है कि बहुमत के साथ झारखंड को बिहार से अलग कर देना. वर्ष 1963 में झारखंड पार्टी के लिए सबसे अच्छे दिन साबित हुए. पार्टी को 32 सीट हासिल होती है.


लेकिन जब बिहार के मुख्यमंत्री के.बी. सहाय अपने राजनीतिक कौशल से झारखंड पार्टी को तोड़ कर रख देते हैं. जयपाल सिंह को अपनी पार्टी कांग्रेस में मिलाते ही झारखंड पार्टी दो भागों में बांटकर रह जाता है.इस विलय के साथ झारखंड आंदोलन औंधे मुंह गिर जाता है. इस आंदोलन की आग बुझने ही वाली होती है कि झारखंड के होने वाले दिगज नेता शिबू सोरेन का आगमन होता है.



शिबू सोरेन ने संभाला आंदोलन का दौर
शिबू सोरेन के पिता की हत्या जमीन माफियाओं के द्वारा तब ही कर दी जाती है, जब वे स्कूल में पढ़ा करते थे. वे साहूकारों और जमीन माफियाओं से अपने आदिवासियों की रक्षा करते हैं. इन्हीं साहूकारों और जमीन माफियाओं से लड़ते हुए शिबू सोरेन ने अपने इलाके में अच्छी पकड़ बना लेते हैं. वे जयपाल सिंह मुंडा के भक्त होते हैं और बाद में उनके लक्ष्य को आगे बढ़ाते हैं. 1972 में कॉमरेड ए.के. राय, बिनोद बिहारी महतो, टेकलाल महतो की मदद से झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन करते हैं.



आजसू की अहम भूमिका
‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ की तर्ज पर 1986 में ‘ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन’ यानि आजसू का गठन जमशेदपुर में किया गया, जो झारखंड आंदोलन के लिए काफी अहम मोड़ साबित हुआ. प्रभाकर तिर्की इसके संस्थापक अध्यक्ष थे और जेएमएम के तत्कालीन अध्यक्ष निर्मल महतो इसके संरक्षक थे. 1989 में आजसू ने ‘करो या मरो’ के ऐलान के साथ 72 घंटे का झारखंड बंद आहूत किया, जो आंदोलन के लिए टर्निंग प्वाइंट था.


1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कार्यकाल में झारखंड आन्दोलन के इतिहास में पहली बार केन्द्र सरकार के साथ आजसू की दिल्ली में “झारखंड वार्ता” संपन्न हुई थी. जिसके बाद कांग्रेस सरकार की पहल पर “झारखंड विषयक समिति” गठित हुई थी. उसके बाद से ही झारखंड राज्य निर्माण के दिशा में कार्य प्रशस्त हुई.


यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है. परन्तु यह भी सच है कि केन्द्र में सत्ता पर आसीन कांग्रेस सरकार ने 1993 में झारखंड राज्य के बदले “परिषद और रिश्वत” ही दिये. आखिरकार सन् 2000 में केन्द्र में जब भाजपा शासित अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. उनके प्रधानमंत्रित्व काल में “बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000” को लोकसभा और राज्यसभा से पारित किया. इस प्रकार अंततोगत्वा “उलगुलान के जनक भगवान बिरसा मुंडा” की जयंती के अवसर पर यानि 15 नवंबर 2000 को भारत देश का 28वां राज्य के रूप में झारखंड बना.



राजनीति लाई रंग
झारखंड मुक्ति मोर्चा, बिहार के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाना शुरू कर देता है. साल आता है 1995 अब तक झारखंड मुक्ति मोर्चा पूरी तरह स्थापित हो जाता है और राजद के साथ मिलकर सरकार बनाता है. 2 मार्च 1997 वह तारीख होता है, जब लालू यादव अलग राज्य झारखंड बनाने को राजी हो जाते हैं.


पर 1998 आते-आते इस बात से पूरी तरह मुकर जाते हैं. साल आता है 2000 बिहार इलेक्शन होता है. पर इस इलेक्शन में किसी को भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं होता है. भारतीय जनता पार्टी उस समय उस दौर में थी, जब वह केंद्र से लेकर राज्य तक में अपनी पकड़ बनाने को आतुर थे. यही वह मौका था, जब भारतीय जनता पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर झारखंड में सरकार बना सकती थी. पर यह तब होगा जब झारखंड एक अलग राज्य होगा.


वहीं बिहार में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने लालू यादव की पार्टी आरजेडी पर यह दबाव दिया कि झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दे दें. उसी साल बिहार विधानसभा में बिहार statehood bill pass होते ही झारखंड का रास्ता साफ हो जाता है. और इस तरह 15 नवंबर को झारखंड की स्थापना होती है.



बाबूलाल मरांडी बने पहले मुख्यमंत्री
राज्य गठन के साथ ही सरकार बनाने का मौका बीजेपी के पाले में चला गया. पार्टी में मुख्यमंत्री के चेहरे की तलाश तेज हुई. तब कड़िया मुंडा के नाम पर जोरदार चर्चा हुई और आखिरकार केन्द्रीय वन पर्यावरण राज्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के नाम पर पार्टी ने मुहर लगा दी.

©लगातार


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